विषय
- #विकास
- #पतझड़
- #सान्त्वना
- #कोसमॉस
- #कविता
रचना: 2024-11-16
रचना: 2024-11-16 13:18
आज की कविता, पतझड़ के कोसमॉस को
देर से आने वाली पतझड़, ठंडी हवा के साथ मैदान में भी
गर्व से खिले हुए कोसमॉस को देखकर लिखी गई कविता है।
ठंडी हवा भी, ठंडी ओस भी
कोसमॉस की तरह, अपने-अपने तरीके से सब पर काबू पा लेते हैं
हम भी अपने-अपने समय और तरीके से
धीरे-धीरे बढ़ते रह सकते हैं, यह बात इसमें शामिल है।
सभी को बसंत में खिलने की ज़रूरत नहीं होती।
कभी-कभी देर से आने वाली पतझड़ में भी खिलना,
थोड़ा देर से होने पर भी कोई बात नहीं।
जैसे सबके मौसम अलग होते हैं
बढ़ने की गति भी, खिलने का समय भी अलग-अलग होता है।
आप इसी पल में भी
किसी के लिए ख़ास पतझड़ बन रहे होंगे।
इतना ही काफी है, बहुत अर्थपूर्ण और सुंदर है
ठंडे मौसम से गुज़र रहे सभी के लिए
थोड़ी सी तसल्ली हो, यही कामना है...
[कविता का पूरा पाठ]
<पतझड़ के कोसमॉस को>
कोसमॉस देर से आने वाली पतझड़ में भी खिल सकता है क्योंकि
ठंडी हवा को भी नृत्य में बदल सकता है
गर्व से अपने आप को हिला सकता है
इसमें फ़ुरसत है।
आसमान के किनारे तक सपना देख सकता है क्योंकि
ठंडी ओस को भी हीरे में बदल देता है
सुनसान मैदान को भी बाग़ में बदल देता है
ऐसा दिल है।
अभी छोटा-सा पौधा है इसलिए
ज़्यादा जल्दी करने की ज़रूरत नहीं
ठंडी हवा में काँपने की ज़रूरत नहीं
तुम किसी के लिए पतझड़ बनते जा रहे हो।
#पतझड़कीकविता #कोसमॉस #देरसेआनेवालीपतझड़ #फूलोंकीकविता
#दिलबहलानेवालीबातें #कविताग्राम #भावुकबातें
#कोसमॉसकाफूल #रोज़मर्राकीबातें #दिलबहलाना #कोसमॉस
#कविताग्राम #लेखनग्राम #पतझड़काभाव
#आरामदेनेवालीबातें #ख़ुदकोदिलबहलाना #विकासकीबातें
टिप्पणियाँ0