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- #भावुकता
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- #चांदनी
रचना: 2024-11-02
रचना: 2024-11-02 09:55
चांदनी का सवाल, स्वरचित कविता
समय बीतता रहता है
लेकिन मेरे मन में व्याप्त उदासी ज्यों की त्यों बनी रहती है, क्या?
खिड़की के सहारे चांदनी को निहारते हुए उठे सवाल पर
आज भी मैं मौन रहकर ही जवाब देती हूँ।
हम सभी के मन में
एक ऐसी उदासी होती है जिसे मिटाया नहीं जा सकता
क्या आप सहमत नहीं हैं?
इस रात, आपकी खिड़की पर भी
चांदनी कुछ देर के लिए ठहर जाए...
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[पूर्ण पाठ]
चांदनी का सवाल
एक शाम, चांदनी ने पूछा।
बीती हुई उदासी
कहाँ रख दी थी तुमने,
आँसुओं की तरह
गुज़रे हुए दिन
अब कोहरे की तरह घने हो रहे हैं और
खिड़की के सहारे देखती हूँ तो
ऋतुएँ हमेशा अपनी जगह पर
फूल खिलाती और मुरझाती रहती हैं।
दुःख की बात है कि
कुछ भी नहीं बदला।
रोज़ाना गुज़रने वाले रास्ते पर
पेड़ अब भी हरे-भरे हैं
लोग आते-जाते रहे, लेकिन,
मेरी उदासी ज्यों की त्यों बनी रही
अब चांदनी फिर पूछती है
तो फिर तेरा मन क्यों वैसा ही है,
मौन रहकर जवाब देने वाली
रात के आकाश के तारों की तरह
मैं शांत भाव से यहाँ ठहरी हुई हूँ
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